किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥ काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी । त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥ जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥ जो यह पाठ करे मन लाई । ता पार होत है https://shivchalisas.com